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SKU: 9789359660080 (ISBN-13)  |  Barcode: 9359660086 (ISBN-10)

गुरू चांडाल योग एवं अंधभक्तों का ज्योतिष (A Complete Research by Vedic Astrology & Human Psychology)

Binding
₹ 245.00

Binding : Paperback

Pages : 183

Edition : 1st

Size : 5.5" x 8.5"

Condition : New

Language : Hindi

Weight : 0.0-0.5 kg

Publication Year: 2024

Country of Origin : India

Territorial Rights : Worldwide

Reading Age : 13 years and up

HSN Code : 49011010 (Printed Books)

Publisher : Motilal Banarsidass Publishing House


विगत दशक में राजनीतिक तथा धार्मिक पटल पर बदलते मानवीय संदभों में एक नई प्रजाति के उदय के साथ, एक नए शब्द का अवतरण हुआ जिसको सम्पूर्ण विश्व में 'अंधभक्त' कहा गया। 'अंधभक्त' शब्द का उपयोग अक्सर नकारात्मक संदर्भ में किया जाता है और इसमें व्यक्ति की आलोचनात्मक सोच की कमी और अनावश्यक एवं कट्टर विश्वास पर जोर दिया जाता है। यह उन लोगों को इंगित करता है जो बिना सोचे-समझे और बिना किसी तर्क के किसी धार्मिक अथवा राजनैतिक व्यक्ति अथवा समूह के प्रति समर्पित होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु हैं जो 'अंधभक्त' की परिभाषा और विशेषताओं को स्पष्ट करते हैं।

अंधभक्त अपने समर्थन में तार्किकता या विवेक का इस्तेमाल नहीं करते। वे अपने राजनैतिक अथवा धार्मिक नेता या विचारधारा की सभी बातों को बिना किसी प्रश्न के मान लेते हैं। अंधभक्त किसी भी प्रकार की आलोचना को बर्दाश्त नहीं करते और आलोचना करने वालों को विरोधी या दुश्मन मानते हैं। अंधभक्त अपने विश्वासों और समर्थन की सत्यता की जाँच करने के लिए स्वतंत्र रूप से जानकारी या तथ्यों की खोज नहीं करते। वे वही मानते हैं जो उनके नेता या विचारधारा के समर्थक कहते हैं। अंधभक्त अक्सर अपनी विचारधारा या नेता की रक्षा में चरम प्रतिक्रियाएँ देते हैं, चाहे वह सोशल मीडिया पर हो या व्यक्तिगत वार्तालाप में।

50 से ज्यादा अंधभक्तों एवं अंधसमर्थकों की कुंडलियों का अध्ययन करने पर, कुछ सामान्य ग्रह संयोग समस्त कुंडलियों में पाए गए। इस प्रकार इन ग्रहों का संयोजन हमारे शोध का विषय बन गया।

गुरु चांडाल योग ज्योतिष शास्त्र में एक महत्वपूर्ण योग है, जिसके फलन का विभिन्न प्राचीन ग्रंथों में अल्प वर्णन मिलता है तथा आधुनिक पुस्तकों में भी इस पर अतिरिक्त घ्यान नहीं दिया है। हमने इस दुर्योग पर विस्तार से शोध इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है।

लेखक के बारे में:

लेखक ने 1990 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद कुछ साल नौकरी की, लेकिन पिता जी के कारण कुछ साल बाद अपने पारिवारिक पेशे पुस्तक विक्रय में आना पडा। शीघ्र ही अपना खुद का प्रकाशन शुरू किया, जिसमें जूनियर, हाईस्कूल, इण्टरमीडिएट और डिग्री लेवल तक की लगभग 250 पुस्तकों का लेखन स्वयं किया। इस कारण विभिन्न विषयों में लगातार अध्ययन करने का जुनून धीरे धीरे दीवानगी की हद तक पहुँच गया। कहते हैं प्रारब्ध अपना कार्य जरूर करेगा। लेखक की कुंडली में ग्रहों की स्थिति तथा शनि की महादशा उसे धीरे-धीरे ज्योतिष विज्ञान की ओर खींचने लगी। 2010 से ज्योतिष अध्ययन की यात्रा शुरू हुई, और आज तक अनवरत जारी है।

ज्योतिष की सैंकड़ों पुस्तकों का अध्ययन करते समय पाश्चात्य ज्योतिष की ओर जिज्ञासा बढ़ी क्योंकि ये पुस्तकें बाज़ार में हिंदी भाषा में उपलब्ध नहीं हैं। आम तौर पर हमारे देश के ज्योतिषी पाश्चात्य ज्योतिष को केवल 'सन साइन और मून साइन' पर आधारित मानते हैं और उसको गंभीरता से नहीं लेते हैं। बहुत अधिक गहराई से साठ से अधिक पाश्चात्य पुस्तकें पढ़कर ज्ञात हुआ कि पाश्चात्य ज्योतिष ने भी वैदिक ज्योतिष को अपना कर तथा उसका प्रयोग कर बहुत कुछ शोध किया है।

यह पुस्तक कार्मिक ज्योतिष पाश्चात्य तथा वैदिक ज्योतिष पर आधारित पुस्तक है जिसमें आप अपनी कुंडली में विभिन्न भावों में, विभिन्न राशियों में स्थित ग्रहों के अध्ययन से ज्ञात कर सकते हैं आप पूर्व जन्म में क्या करते थे? आप क्या थे? और आपको अपने पूर्व जन्म के ऋणों को इस जन्म में कैसे उतार कर परम लक्ष्य (मोक्ष) की ओर कदम बढ़ाना है।

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