Swatantrottar Bhartiya Darshanik Chintan
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Pages : 169
Size : 5.5" x 8.5"
Condition : New
Language : Hindi
Weight : 0.0-0.5 kg
Publication Year: 2019
Country of Origin : India
Territorial Rights : Worldwide
Reading Age : 13 years and up
HSN Code : 49011010 (Printed Books)
Publisher : Motilal Banarsidass Publishing House
भारत की दार्शनिक परम्परा अति प्राचीन है। काल-क्रम में ऐतिहासिक और सामाजिक परिवर्तनों के कारण उनमें भी परिवर्तन हुए पर भावात्मक या निषेधात्मक रूप से उन पर वैदिक और उपनिषदिक विचारों का प्रभाव रहा। इसी परिवर्तन के क्रम में उन्नीसवीं सदी में भारतीय दार्शनिक चिन्तन में एक क्रांति हुई-स्वतंत्र चिन्तन की। राममोहन राय, विद्यासागर, अरविन्द, विवेकानन्द, गांधी, राधाकृष्णन, इकबाल आदि ने भारतीय चिन्तन को एक नई दिशा दी। रूढियों तथा अंन्धविश्वासों से मुक्ति की सतत् चेष्टा होती रही। फलस्वरूप इस सदी के उत्तरार्द्ध में, जब देश को स्वतंत्रता मिली तो भारतीय दार्शनिक चिन्तन और प्रणाली ने एक नया रूप धारण कर लिया। विचार का केन्द्र बिन्दु पारलौकिक से हटकर इहलौकिक हो गया। कृष्णमूर्ति, एम०एन० राय, जवाहरलाल, जयप्रकाश, देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय, आदि का इसमें मुख्य योगदान रहा है। अतः उनके विचारों की व्याख्या के बिना समकालीन भारतीय दर्शन की कहानी अधूरी रह जायेगी। उनके विचारों का परिचय देना ही इस छोटी सी रचना का लक्ष्य है। यह रचना स्वतन्त्रोत्तर भारतीय दार्शनिक चिन्तन की कहानी है। इसके लिए सात विचारकों का चयन किया गया है। प्रथम हैं राममोहन राय। उनका विचारकाल तो उन्नसवीं सदी रहा है पर पुरातन और नवीनतम की कड़ी के रूप में उनके विचारकों का आवश्यक माना गया। महर्षि रमण भी बीसवीं सदी के पूर्वाद्ध के ही हैं। पर उनके विचार उत्तरार्द्ध में ही प्रचरित और प्रसारित हुए। उनका चयन विशेष रूप से इसलिए हुआ कि उनकी प्रणाली उन्हें प्राचीन दर्शन से अलग खड़ा कर देती है। कृष्णमूर्ति, एम०एन० राय, जवाहरलाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण तथा देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय तो उत्तरार्द्ध के ही हैं।
इस पुस्तक से न केवल दर्शन के छात्र अपितु दार्शनिक विचारों में रूचि रखने वाले सामान्य पाठक भी लाभान्वित होंगे और उन्हें उन विचारकों के सम्बन्ध में अधिक जानने की प्रेरणा मिलेगी।